- अब इंसान खा रहे हैं पहाड़ तो क्या करें प्रकृति
- दार्जीलिंग और कलिमपंग के 15 से 22 प्रतिशत इलाके है अतिसंवेदनशील
"हालाँकि पश्चिम बंगाल के दो जिलों दार्जीलिंग और कलिम्पोंग में सबसे ज्यादा लैंड स्लाइड की घटना घटती हैं। वर्ष 2014 से 2020 के दौरान पश्चिम बंगाल में 374 लैंड स्लाइड के मामले सामने आये हैं। वहीं पहले स्थान पर रहे केरल में इस दौरान 2238 मामले सामने आये है। गृह मंत्रालय सूत्रों से मिली जानकरी के अनुसार, दोनों जिलों यानी दार्जीलिंग और कलिम्पोंग में वर्ष भर लैंड स्लाइड की संभावना बनी रहती हैं। हालाँकि, बारिश के मौसम में लैंड स्लाइड की परिमाण अलग -अलग होती है। जिओलॉजिकल सर्वे ऑफ़ इंडिया (जीएसआई ) के नेशनल लैंड स्लाइड जिओडेटाबेस की रिपोर्ट के मुताबिक पश्चिम बंगाल के दो जिले दार्जीलिंग और कलिम्पोंग के 15 से 22 फीसदी इलाके लैंड स्लाइड के मामले में अति संवेदनशील है।"
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LAND SLIDE IN WEST BENGAL : हिमाचल प्रदेश के किनौर में बुधवार को हुई भूस्खलन के कारण कई लोगों की मौत हो गई है। कई घायल है तो कइयों का अभी भी कुछ पता नहीं चल सका है। इस घटना को लेकर प्रधानमंत्री ने शोक व्यक्त किया हैं और मृतकों और घायलों के लिए मुआवजा की घोषणा की हैं।
लैंड स्लाइड का दर्द सिर्फ इन इलाकों में ही रहने वालों लोगों को नहीं मिलता है बल्कि केरल और पश्चिम बंगाल राज्यों में भी पहाड़ों की दरकने की घटना घटती है। लैंड स्लाइड के मामले में पश्चिम बंगाल भी अछूता नहीं है। इस मामले में पश्चिम बंगाल दूसरे स्थान पर है।
हालाँकि पश्चिम बंगाल के दो जिलों दार्जीलिंग और कलिम्पोंग में सबसे ज्यादा लैंड स्लाइड की घटना घटती हैं। वर्ष 2014 से 2020 के दौरान पश्चिम बंगाल में 374 लैंड स्लाइड के मामले सामने आये हैं। वहीं पहले स्थान पर रहे केरल में इस दौरान 2238 मामले सामने आये है।
गृह मंत्रालय सूत्रों से मिली जानकरी के अनुसार, दोनों जिलों यानी दार्जीलिंग और कलिम्पोंग में वर्ष भर लैंड स्लाइड की संभावना बनी रहती हैं। हालाँकि, बारिश के मौसम में लैंड स्लाइड की परिमाण अलग -अलग होती है।
जिओलॉजिकल सर्वे ऑफ़ इंडिया (जीएसआई ) के नेशनल लैंड स्लाइड जिओडेटाबेस की रिपोर्ट के मुताबिक पश्चिम बंगाल के दो जिले दार्जीलिंग और कलिम्पोंग के 15 से 22 फीसदी इलाके लैंड स्लाइड के मामले में अति संवेदनशील है।
लैंड स्लाइड होने के कई कारण है, आइये जानते है क्या कहते हैं पर्यावरणविद्
कोलकाता के एक प्रसिद्ध पर्यावरणविद् सौमेंद्र मोहन घोष के अनुसार, लैंड स्लाइड के कई कारण हैं। इनमें मुख़्यतौर पर बारिश की मात्रा ज्यादा होना,पहाड़ों पर वाहनों की संख्या में इजाफा, पेड़ों को काटना और अवैज्ञानिक तरीके से निर्माणकार्य करना।
घोष बताते हैं कि ज्यादा बारिश के कारण पहाड़ों की मिट्टी कमजोर हो जाती हैं और पहाड़ टूटने लगते हैं। जिस तरह से लगातार बारिश के कारण सड़कों से पिच निकल जाते हैं ठीक उसी तरह पहाड़ों पर भी बारिश के कारण मिट्टी कमजोर हो जाती है और फिर पहाड़ टूटने लगते हैं।
वहीं पहाड़ों पर वाहनों की संख्या का ज्यादा होना भी लैंड स्लाइड का एक कारण है क्योंकि जयादा वाहन चलने से प्रदूषण ज्यादा होती है और प्रदूषण से मिट्टी की गुणवत्ता भी कम हो जाती है जिससे पहाड़ कमजोर हो जाते है। पेड़ों के काटने से भी पहाड़ में लैंड स्लाइड की घटना घटती है। पेड़ की जड़ें मिट्टी और पहाड़ को पकड़ कर रखती है।
इन जड़ों के कारण पहाड़ डंटे रहते हैं लेकिन पेड़ों के नहीं होने से पहाड़ की मिट्टी भी ढीली पड़ जाती है और पहाड़ टूटने लगते हैं। इन सब के अलावा अभी निर्माण कार्य के दौरान होने वाले कम्पन और ड्रिल के कारण पहाड़ सबसे ज्यादा प्रभावित हो रहे हैं।
अवैज्ञानिक तरीकों से पहाड़ों पर प्रोजक्ट शुरू किये जा रहे हैं। प्रोजेक्ट शुरू करने के लिए एनवायर्नमेंटल इम्पैक्ट अससेमेंट नहीं किया जा रहा है। किसी भी निर्माण कार्य के लिए इस अससेमेंट का करना जरुरी होता है।
इससे पता चलता है की मिट्टी की क्वालिटी क्या है , जमीन या पहाड़ को कितने कम्पन सहने की क्षमता है या पहाड़ की उम्र क्या है ? इसके बाद ही निर्माण होता है। सूत्र बताते है कि ऐसा करने से लागत बढ़ती है इसलिए कांट्रेक्टर ऐसा नहीं करते हैं।
पहाड़ों को दरकने से रोकना है तो उठाना होगा ये कदम
पर्यावरणविद् सौमेंद्र मोहन घोष का कहना है कि अगर लैंड स्लाइड नहीं रोकी गई तो कोई भी पहाड़ नहीं बचेगा। इसका कारण यह है कि अगर एक बार पहाड़ टूटना शुरू हो जाता है तो फिर वो टूटता ही चला जाता है। इसलिए पहाड़ों को दरकने से बचाने के लिए जरुरी और ठोस कदम उठाने की जरुरत है।
घोष के अनुसार, बारिश की मात्रा को नहीं कम कर सकते है लेकिन पेड़ तो लगा सकते है। पहाड़ों पर ज्यादा से ज्यादा पेड़ लगाने की जरुरत है। इसके अलावा, पहाड़ों के बगल में समुद्र तट की तरह बोल्डर लगाने की जरुरत है। सिर्फ किनारों पर ही नहीं बल्कि पहाड़ों के बीच - बीच में भी बोल्डर लगाने की आवश्यकता है।
इसके अलावा, पहाड़ों का विकास जरुरी है लेकिन विकास के नाम पर अवैज्ञानिक तरीके से निर्माण कार्य को रोकना बहुत ही जरुरी है। सही तरीके से निर्माण करने से पहाड़ भी सुरक्षित रहेंगे और पहाड़ों के विकास में भी कोई रुकावट नहीं आएगी।
लैंड स्लाइड प्रबंधन योजना की गयी है लागू
वहीं गृह मंत्रालय सूत्रों के मुताबिक, लैंड स्लाइड से ग्रस्त राज्यों को सहायता दी जाती है। पश्चिम बंगाल सरकार द्वारा दी गयी सूचना के बाद दार्जीलिंग और कलिम्पोंग की जिला को मदद के लिए केंद्र से फण्ड दी जा रही है।
राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के तहत इन लैंड स्लाइड ग्रस्त जिलों और राज्यों को सहायता के लिए लैंड स्लाइड लिटिगेशन स्कीम को मान्यता प्रदान की गयी है। ये एक पायलट प्रोजेक्ट है जिसके तहत भूस्खलन की निगरानी, जागरूकता पैदा करने, क्षमता निर्माण/प्रशिक्षण आदि के साथ-साथ भूस्खलन शमन उपायों के लाभों को प्रदर्शित किया जायेगा।
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