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Thursday, August 19, 2021

TALIBAN 2.0 : शरिया कानून और महिलाओं की स्थिति, 20 सालों बाद क्या बदला है तालिबान ?

  •  तालिबान की हरकतें बता रही है कुछ अलग ही कहानी  

"इनमें सबसे ज्यादा डर में महिलाएं हैं। वो अपनी शिक्षा और  भविष्य को लेकर सबसे ज्यादा चिंतित है।  हालांकि, तालिबान के प्रवक्ता जबीहुल्लाह मुजाहिद ने ये विश्वास दिलाया है कि तालिबान के राज में भी महिलाओं को शिक्षा और अन्य अधिकार मिलेंगे मगर उनके अधिकार शरिया कानून के तहत होंगे। इसके लिए सबसे पहले ये जानने कि जरुरत है आखिर ये शरिया कानून क्या है और इससे महिलाओं को क्या सुविधा मिलेगी। दरअसल , इतिहास गवाह है कि पाकिस्तान में महिलाओं को शिक्षित करने के लिए उठाये गए कदम के कारण 15 वर्षीया मलाला युसुफ़ज़ई को तालिबान ने गोली मार दी थी। "

pics of talibans (from social media)



TALIBAN IN AFGHANISTAN : अफ़ग़ानिस्तान पर अब पूरी तरह से तालिबान का कब्ज़ा हो गया है। इसके बाद से ही अफ़ग़ानिस्तान छोड़कर भागने के लिए लोग हर तरह के कदम उठा रहे हैं। अफगानी नागरिक खुद को बेबस और लाचार समझ रहा है। 

दूसरी तरफ तालिबान ने कब्जे के बाद ही एलान किया कि उनके राज में किसी को कोई खतरा नहीं हैं मगर उनकी कथनी और करनी में अंतर देखा जा रहा है।  हाथों में बंदूक लेकर घूमने वाले तालिबान से अफ़ग़ानिस्तान की जनता पूरी तरह डरी हुई है।  

इनमें सबसे ज्यादा डर में महिलाएं हैं। वो अपनी शिक्षा और  भविष्य को लेकर सबसे ज्यादा चिंतित है।  हालांकि, तालिबान के प्रवक्ता जबीहुल्लाह मुजाहिद ने ये विश्वास दिलाया है कि तालिबान के राज में भी महिलाओं को शिक्षा और अन्य अधिकार मिलेंगे मगर उनके अधिकार शरिया कानून के तहत होंगे। 

इसके लिए सबसे पहले ये जानने कि जरुरत है आखिर ये शरिया कानून क्या है और इससे महिलाओं को क्या सुविधा मिलेगी। दरअसल , इतिहास गवाह है कि पाकिस्तान में महिलाओं को शिक्षित करने के लिए उठाये गए कदम के कारण 15 वर्षीया मलाला युसुफ़ज़ई को तालिबान ने गोली मार दी थी। 

हालांकि मलाला बच गयी थी लेकिन तालिबान का एक रूप सामने आ गया थ।  इसलिए शरिया कानून को लेकर तालिबान की जो व्याख्या होगी उससे महिलाओं की चिंता और डर बढ़ गयी है।  


शरिया कानून पर एक नजर 

शरिया कानून इस्लाम की कानून व्यवस्था है।  इसे इस्लाम की सबसे महत्वपूर्ण पुस्तक कुअरान और इस्लामी विद्वानों के फतवों (फैसलों ) को मिलाकर तैयार किया गया है। इसका अगर शाब्दिक अर्थ का पता लगाया जाये तो इसका अर्थ पानी का एक स्पष्ट और व्यवस्थित रास्ता होता है।  

शरिया कानून जीवन जीने का रास्ता बताता है। सभी मुसलमानों से इसे पालन करने की उम्मीद की जाती है। इसमें प्रार्थना, उपवास और गरीबों को दान देने को कहा गया है।  शरिया कानून का उद्देश्य ये भी है कि इससे मुसलमानों को समझने में आसानी होती है कि उन्हें अपना जीवन अपने खुदा के लिए कैसे और किस तरह से जीना है।

 शरिया मुसलमानों के दैनिक क्रिया कलापों को भी व्यवस्थित करने में मदद करता है।  अगर किसी मुसलमान को ये तय करना है कि उसे यहाँ जाना चाहिए या नहीं , इसके लिए वो शरिया विद्वानों से सलाह ले सकता है और उसी के अनुसार कदम उठा सकता है।  इसके अलावा पारिवारिक कानून , फाइनेंस और व्यवसाय के मार्गदर्शन के लिए कोई भी शरिया कानून की तरफ रुख कर सकता है।  


शरिया कानून में दंड के लिए ऐसा है प्रावधान 

शरिया कानून में दंड को दो भागों में बांटा गया है।  पहला 'हद' यानी गंभीर अपराध और दूसरा होता है 'तजीर'।  हद के लिए अपराध का दंड तय होता है जबकि तजीर के लिए दंड न्याय करने वालों पर छोड़ दिया जाता है।  

हद के तहत चोरी का मामला होता है जिसमें दंड के तौर पर आरोपी के हाथ काट दिए जाते हैं और व्यभिचार करने पर पत्थर से मार - मार कर मार डाला जाता है।  हालांकि कुछ इस्लमिक संगठनों का तर्क होता है कि इसके तहत सजा देने से पहले पर्याप्त सबूतों की समीक्षा की जाती है तब जाकर ऐसे दंड दिए जाते हैं।   


महिलाओं की स्थिति 1996  से 2001 में थी तालिबान के राज में बदतर 

तालिबान ने वर्ष 1996 में अफगानिस्तान पर कब्ज़ा जमाया था।  5  साल तक शासन के बाद अमरीका ने तालिबान का राज 2001 में समाप्त कर दिया था।  हालांकि, इन 5 सालों में महिलाओं की स्थिति तालिबान के राज में काफी बदतर थी।  उन्हें शिक्षा का अधिकार नहीं था।  

8  साल की कम उम्र से ही लड़कियों को बुर्का पहनने का कानून बनाया गया था।  इसके अलावा महिलाओं को अकेले और बिना बुर्के के घर से बाहर निकलने की इजाजत नहीं थी।  उन्हें किसी पुरुष संगी के साथ ही घरों से बाहर निकलने की इजाजत थी। अगर कोई महिला अकेली बाहर पायी जाती थी तो उन्हें कोड़े मारे जाते थे। 

अब 20 साल बाद तालिबान फिर से सत्ता पर काबिज हुआ है लेकिन वो दावा कर रहा है कि अब उनके शासन में महिलाओं को भी आजादी दी जाएगी।  तालिबान के प्रवक्ता ने अपने पहली प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा है कि दुनिया उन्हें मान्यता दे। उनकी हुकूमत में किसी भी विदेशी दूतावास को कोई खतरा नहीं हैं।  

अफ़ग़ानिस्तान में महिलाओं को भी डरने और चिंतित होने की जरुरत नहीं हैं। तालिबान प्रवक्ता जबीहुल्लाह मुजाहिद ने कहा है, हम महिलाओं को अपनी व्यवस्था के भीतर काम करने और पढ़ने की अनुमति देने जा रहे हैं।  महिलाएं हमारे ढांचे के भीतर बहुत ही सक्रिय होने जा रही हैं।

  महिलाओं के अधिकार शरिया कानून के तहत तय किये जाएंगे।  हालांकि अभी तक तालिबान की तरफ से शरिया कानून के तहत महिलाओं के प्रति व्यवहार को लेकर कोई व्याख्या नहीं दी गयी है।  वहीं दूसरी तरफ , तालिबान का खौफ अफ़ग़ानिस्तान पर देखा जा रहा है। 

 भारत ने भी हिन्दुओं और सिखों को वापस देश में बुलाने के लिए कवायद शुरू कर दी है। रविवार के बाद से ही तालिबान के अत्याचार की ख़बरें सामने आ रही हैं।  तालिबान अपने को बदलने का दावा कर रहा है लेकिन उसके कारनामे कुछ और ही बयां कर रहे हैं।  ऐसे में महिलाओं की चिंता अफगानिस्तान में लाजमी है।  

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