- महालया के बाद से वायु प्रदूषण में होता है इजाफा, कई एहतियातन कदम उठाने की है आवश्यकता
"कोरोना वायरस को लेकर एक्सपर्ट का कहना है, कोरोना उन मरीजों को अपना शिकार जल्द बनती हैं जिनमें डायबिटीज, हाइपरटेंशन और हाई ब्लड प्रेशर सहित अन्य किडनी और फेफड़े से सम्बंधित बीमारियां होती है। इन्हें कोमोर्बिडीटी कहा जाता है। कोरोना वायरस के संक्रमण में वायु प्रदूषण भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है , इसमें दो राय नहीं है। दरअसल , ये सर्वविदित है कि वायु प्रदूषण से हमारे फेफड़े, ह्रदय और किडनी सबसे ज्यादा प्रभावित होते हैं। वहीं कोरोना भी फेफड़े पर ही सबसे पहले हमला करती है। इसलिए अगर हम स्वच्छ वातावरण में रहे तो कोरोना का असर कम रहेगा।"
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KOLKATA : पूरे देश में कोरोना का कहर अभी भी बरक़रार है। कोरोना की तीसरी लहर कुछ राज्यों में अपना कहर बरपा रही है। कोरोना से लड़ाई के लिए वैक्सीनेशन पर जोर दिया जा रहा है। मगर, कोरोना पर अभी भी पूरी तरह से लगाम नहीं कसा जा सकेगा।
कोरोना वायरस को लेकर एक्सपर्ट का कहना है, कोरोना उन मरीजों को अपना शिकार जल्द बनती हैं जिनमें डायबिटीज, हाइपरटेंशन और हाई ब्लड प्रेशर सहित अन्य किडनी और फेफड़े से सम्बंधित बीमारियां होती है। इन्हें कोमोर्बिडीटी कहा जाता है।
कोरोना वायरस के संक्रमण में वायु प्रदूषण भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है , इसमें दो राय नहीं है। दरअसल , ये सर्वविदित है कि वायु प्रदूषण से हमारे फेफड़े, ह्रदय और किडनी सबसे ज्यादा प्रभावित होते हैं।
वहीं कोरोना भी फेफड़े पर ही सबसे पहले हमला करती है। इसलिए अगर हम स्वच्छ वातावरण में रहे तो कोरोना का असर कम रहेगा। ऐसा ही मानना है पर्यावरणविदों के समूह का।
कोरोना से लड़ना है तो लड़ना पड़ेगा पहले वायु प्रदूषण से
पर्यावरणविद् सौमेंद्र मोहन घोष बताते है कि कोरोना और वायु प्रदूषण को एक दूसरे का पूरक कहना गलत नहीं होगा। कोरोना वायरस एयरबोर्न बीमारी है। वायु से ही कोरोना वायरस हमारे शरीर में प्रवेश करती है और हमारे फेफड़े, किडनी और ह्रदय को बीमार बना देते हैं।
उन्होंने बताया कोरोना का मुख्य गुनेहगार कोमोर्बिडीटी है जिसके कारण ही अधिकतर मौतें हुई हैं। जिन व्यक्ति को किडनी , फेफड़ें और हृदय से सम्बंधित बीमारियां है उन पर कोरोना जल्दी ही असर दिखाता है और लोगों की मौत हो जाती है।
दरअसल, प्रदूषित वायु में जो छोटे दूषित कण होते हैं वो जल्द ही ब्लड में मिल जाते हैं जिससे ब्लड में ऑक्सीजन की कमी हो जाती है। ऑक्सीजन की मात्रा कम होने से ही सांस लेने में तकलीफ होती है और किडनी प्रभावित होती है। इसलिए वायु प्रदूषण पर रोकथाम से कोरोना पर लगाम कसने में सफलता मिलेगी।
महालया के बाद से बंगाल में वायु प्रदूषण में होती है बढ़ोतरी
सौमेंद्र मोहन घोष का कहना है, प्रत्येक वर्ष महालया के बाद से ही वायु प्रदूषण में बढ़ोतरी होती है। सितम्बर के बाद से ही बारिश बंद हो जाती है जिससे प्रदूषण बढ़ जाता है। दरअसल, बारिश के कारण हवा में मौजूद टॉक्सिक गैस का परिशोधन स्वत: हो जाता है।
जिससे प्रदूषण में कमी आ जाती है। 15 नवंबर के बाद से फरवरी 15 तक वायु प्रदूषण की मात्रा सबसे ज्यादा होती है। कोलकाता में वायु प्रदूषण दिल्ली की तुलना में कम है लेकिन अभी ये अलार्मिंग स्टेज पर है। इस बाबत अभी से ही वायु प्रदूषण को कम करने के लिए उचित कदम उठाने की जरूरत है।
घोष बताते है , कोलकाता में प्रदूषण का स्तर 40 से 50 माइक्रोग्राम प्रतिघन मीटर होता है तो वहीं दिल्ली में वायु प्रदूषण का स्तर तीन गुना ज्यादा यानी 120 से 150 माइक्रोग्राम प्रतिघन मीटर से ज्यादा होती है।
वहीं महालया के बाद से बंगाल में उत्सव का माहौल होता है जिससे वायु प्रदूषण में इजाफा होता है। ये सीमा 120 माइक्रोग्राम प्रतिघन मीटर या उससे ज्यादा तक पहुँच जाती है।
हालांकि गत वर्ष कोरोना के कारण थोड़ी रेस्ट्रिक्शन थी लेकिन अब फिर से पहले जैसे ही हालात बन गए हैं। शीतकाल में इसके कारण और ज्यादा प्रदूषण बढ़ेगा।
दुर्गा पूजा के दौरान वायु प्रदूषण बढ़ेगी अगर लॉक डाउन किया गया तो कम से कम 30 प्रतिशत तक वायु प्रदूषण में कमी आएगी। दुर्गा पूजा को वर्चुअल मनाने पर जोर देने की भी अभी है जरूरत।
बाहर के साथ ही घर के भीतर भी हवा को स्वच्छ रखना है जरूरी
पर्यावरणविद् घोष का कहना है , किसी भी जगह की हवा पब्लिक हेल्थ के लिए उपयुक्त है या नहीं , इसके लिए वर्ल्ड हेल्थ आर्गेनाईजेशन ने एक सीमा तय की है। वो सीमा है वायु प्रदूषण की मात्रा 25 माइक्रोग्राम प्रतिघानमीटर होना चाहिए , अगर इससे ज्यादा होती है तो वो जगह स्वास्थ्य के लिए स्वाभाविक नहीं हैं।
घोष का कहना है, बाहर की हवा दूषित होने से घर के भीतर की हवा भी दूषित हो जाती है। घर के भीतर की हवा को स्वच्छ रखने के लिए घर में एयर प्यूरीफायर लगाने की जरूरत है। वहीं, बाहरी वायु को स्वच्छ रखने के लिए कई कदम उठाने की जरूरत है।
प्रत्येक सिग्नल पर एयर क्वालिटी इंडेक्स मॉनिटर मशीन लगाने की जरूरत है। कोलकाता और आसपास केवल 7 आटोमेटिक डिवाइस लगाई गई है जो पर्याप्त नहीं है। वहीं दिल्ली में अभी सिग्नलों पर एयर प्यूरीफायर मशीन लगाया जा रहा है , कोलकाता में भी इस तरह के कुछ मशीन लगाने की जरुरत है।
इसके अलावा पहले जिस तरह से कोरोना से लड़ने के लिए सवाधानियां बरती गई थी वो अभी नहीं बरती जा रही है। इस बाबत फिर से रेस्ट्रिक्शन्स लगन अनिवार्य है। पहले मिस्ट कैनन से पूरे महानगर में छिड़काव होता था लेकिन अभी ये कम हो गया जिसे फिर से बढ़ाने की जरूरत है।
वहीं वाहनों से होने वाले प्रदूषण के लिए डीजल और पेट्रोल जिम्मेदार है। इसलिए, इनके विकल्प के तौर पर Electric vehicles, Bio fuel , बायो गैस और सीएनजी के इस्तेमाल पर जोर देने की आवश्यकता है।
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