- भारत में अब तक मिक्स फ्यूल वाहनों को नहीं मिली है अनुमति
- कोलकाता में मिक्स फ्यूल के लिए नहीं है कोई इंफ्रास्ट्रक्चर
- सीएनजी वाहनों से 50 प्रतिशत प्रदूषण में आती है कमी, देश के अन्य राज्यों में चल रहे हैं ये वाहन
"जब डीजल नहीं होगी तब सीएनजी से चलेगी और जब सीएनजी नहीं होगी तब ये बस डीजल से चलाई जाएगी, मगर इस मिक्स फ्यूल को लेकर एक्सपर्ट और पर्यावरणविद् ने कई सवाल उठाये हैं। मिक्स फ्यूल वाली बसों का यहाँ चलना मुश्किल है और ये यात्रियों की सुरक्षा की दृष्टि से भी सटीक नहीं है। पूरे भारत में मिक्स फ्यूल पर कोई भी वाहन नहीं चलते हैं और न ही इन वाहनों को परिवहन मंत्रालय से स्वीकृति मिली है। इस बारे में एक्सपर्ट और पर्यावरणविद् का मानना है कि मिक्स फ्यूल से वाहनों पर अतिरिक्त बोझ बढ़ेगा और इंजन जल्दी गर्म हो जाएगा जिससे कोई भी दुर्घटना घट सकती है। "
![]() |
उद्धाटन किये गए मिक्स फ्यूल बस |
कोलकाता : कोलकाता में मिक्स फ्यूल वाली बसों को बुधवार को परिवहन मंत्री फिरहाद हकीम ने हरी झंडी दिखाई। मंत्री का कहना है , डीज़ल की बढ़ती कीमत को देखते हुए इस बस को लांच किया गया है।
ये बस 40 -60 के अनुपात में यानी 40 प्रतिशत डीजल से और 60 प्रतिशत सीएनजी से चलेगी। यानी लिक्विड और गैस मिक्स फ्यूल से वाहन चलेंगे।
जब डीजल नहीं होगी तब सीएनजी से चलेगी और जब सीएनजी नहीं होगी तब ये बस डीजल से चलाई जाएगी, मगर इस मिक्स फ्यूल को लेकर एक्सपर्ट और पर्यावरणविद् ने कई सवाल उठाये हैं।
मिक्स फ्यूल वाली बसों का यहाँ चलना मुश्किल है और ये यात्रियों की सुरक्षा की दृष्टि से भी सटीक नहीं है। पूरे भारत में मिक्स फ्यूल पर कोई भी वाहन नहीं चलते हैं और न ही इन वाहनों को परिवहन मंत्रालय से स्वीकृति मिली है।
हालांकि केवल एग्रीकल्चरल और कंस्ट्रक्शन में इस्तेमाल वाहनों के लिए मिक्स फ्यूल कि अनुमति हैं। इस बारे में एक्सपर्ट और पर्यावरणविद् का मानना है कि मिक्स फ्यूल से वाहनों पर अतिरिक्त बोझ बढ़ेगा और इंजन जल्दी गर्म हो जाएगा जिससे कोई भी दुर्घटना घट सकती है।
मिक्स फ्यूल से कैसे वाहनों को हैं खतरा
एक्सपर्ट बताते है कि पूरे देश में सीएनजी से चलने वाली वाहनें केवल सीएनजी से ही चलती हैं यानी मिक्स फ्यूल यानी सीएनजी और डीजल मिलाकर कोई वाहन नहीं चलती है।
जो वाहन सीएनजी से चलते हैं उनमें टैंक नहीं होता है वो सीएनजी सिलिंडर से चलते हैं। ऐसी वाहनें फैक्ट्री से ऐसे ही बनकर आती है जो सीएनजी वाहन कहलाते हैं.
अगर किसी वाहनों को सीएनजी में कन्वर्ट करना है तो उसका इंजन मॉडिफाइड करना होता है यानी कम्पेरीज़न इग्निशन इंजन और स्पार्कड इंजन में कन्वर्ट करना होगा। इसके लिए इन बसों में रेट्रो फिटमेंट किट लगाने की जरुरत होती है।
सीएनजी से चलने वाली बसों में खर्च कम होती है। ये सस्ता विकल्प है और इससे प्रदूषण भी 50 प्रतिशत कम होता है। वहीं मिक्स फ्यूल वाली इन बसों में दो टैंक लगाए गए हैं , जिनमें एक सीएनजी के लिए और एक डीजल के लिए है।
एक्सपर्ट का कहना है , एक तो वैसे ही बसों का अपना वजन होता है और उसमे यात्रियों के चढ़ने के बाद वजन और ज्यादा हो जाता है।
ऐसे में अगर डबल टैंक लगाया जाता है तो इससे बस का वजन और ज्यादा बढ़ जाता है। इससे बस के इंजन के गर्म होने और दुर्घटना घटने का चांस और ज्यादा बढ़ जाता है।
बिना testing के बसों को रास्ते पर उतारना है गलत
एक्सपर्ट का कहना है , मिक्स फ्यूल बसों को सड़क पर उतारने पर बंगाल सरकार का दावा है कि उनके एक्सपर्ट ने अच्छी तरह से रिसर्च कर मिक्स फ्यूल पर यानी गैस और लिक्विड से बसों के चलने पर सहमति जताई है।
बंगाल सरकार ने काफी रुपया भी खर्च किया है। हालाँकि इन बसों को कम से कम 10 हजार किलोमीटर की टेस्टिंग ड्राइव की जरुरत थी।
ये टेस्टिंग ड्राइव सड़कों या हाईवे पर नहीं बल्कि टेस्टिंग ट्रैक पर करने की जरुरत थी। मगर यहाँ ऐसा कुछ देखने को नहीं मिला।
एक्सपर्ट और पर्यावरणविद् का कहना है, इस तरह के टेस्टिंग के लिए हमारे देश में तीन जगह सेण्टर है, जिनमें एक पुणे में है ऑटोमोबाइल रिसर्च ऑफ़ इंडिया, महाराष्ट्र में व्हीकल्स रिसर्च डेवलपमेंट इस्टैब्लिशमेंट और दिल्ली में खुला है आई-कैट (I-CAT)।
सरकारी एजेंसियां पहले इस तरह का टेस्ट करती है और फिर संसद में बिल पास होता है। गैजेट नोटिफिएक्शन होती है और फिर केंद्रीय परिवहन मंत्रालय उस वाहनों को सड़क पर उतारने की अनुमति देते हैं।
लेकिन , यहाँ तो ऐसा कोई कदम नहीं उठाया गया। आरोप हैं कि अवैध तरीके से मिक्स फ्यूल बस को लांच किया गया है।
एलपीजी स्टेशन है, अगर पेट्रोल वाहनों को कन्वर्ट किया जाता तो कारगर होती स्कीम
मिक्स फ्यूल बस को लेकर पर्यावरणविद् और एक्सपर्ट सौमेंद्र मोहन घोष ने भी असहमति जताई है। उन्होंने बताया, मिक्स फ्यूल से कोई भी वाहन चलाने के लिए कोलकाता में पर्याप्त सुविधा नहीं है।
घोष का कहना हैं , ये रिसर्च अभी अधूरा है। अभी इन वाहनों में सॉफ्टवेयर लॉजिस्टिक को डेवलप करने की भी जरुरत है। ताकि वाहनों के डैशबोर्ड पर डिजिटली देखा जाए कितना मिक्स फ्यूल का अनुपात है। इससे स्पीड वेरिएशन भी पता चल सकेगा।
यहाँ न्यूटाउन और गरिया में सीएनजी स्टेशन है। वहीं यहाँ और पूरे देश में ही मिक्स फ्यूल से निकलने वाली धुएं की टेस्टिंग के लिए कोई धुआं टेस्टिंग पैरामीटर ही नहीं है। ऐसे में मिक्स फ्यूल वाहनों की विश्वसनीयता भी सवाल के घेरे में है।
इसके अलावा अगर पूरा प्रोसीजर माना भी जाये तब भी अभी और दो साल का समय लगेगा इसे लांच करने में। उन्होंने ये भी बताया , हमारे यहाँ एलपीजी पम्पिंग स्टेशन है।
पेट्रोल से चलने वाले ऑटो को एलपीजी में कन्वर्ट किया गया है और एलपीजी से ऑटो चलते है। अगर हमारे यहाँ पेट्रोल को कन्वर्ट कर एलपीजी से वाहनों के चलने की सुविधा है तो फिर सरकार ने पेट्रोल वाहनों को क्यों नहीं एलपीजी वाहनों में कन्वर्ट करने की स्कीम निकाली ? इससे भी प्रदूषण में कमी आती।
वहीं जादवपुर यूनिवर्सिटी के मैकेनिकल इंजिनियरिंग के पूर्व प्रोफेसर और एनआईटी अगरतला व सिल्चर के पूर्व डायरेक्टर पी के बोस का भी यही कहना है। बोस का कहना हैं , मिक्स फ्यूल पर बस चलाने को लेकर जो रिसर्च में बताया जा रहा है , वो बिलकुल गलत है। डीजल और सीएनजी एक साथ कारगर साबित नहीं होंगे।
No comments:
Post a Comment