- धापा में कचरे के ढेर को हटाना मुश्किल, पर कचरे की recycling संभव
- कोलकाता का कचरा अब फेंका जायेगा बजबज, केएमसी ने शुरू की तैयारी
" इस वजह से ईस्ट कोलकाता वेटलैंड को रामसर साइट (1208) के अंतर्गत शामिल किया गया था। रामसर समझौता एक अंतर्राष्ट्रीय समझौता है जो वेटलैंड के संरक्षण और इनके दिर्घावधि इस्तेमाल पर काम करता है। इसके तहत भारत के 25 वेटलैंड को शामिल किया गया ह। हालांकि , जब ब्रिटिश साम्राज्य थी तब भी इस वेटलैंड की देखभाल की जाती थी। ब्रिटिश ने वेटलैंड को भरने या इस पर किसी प्रकार के निर्माण कार्य पर सख्त मनाही की थी जिसके कारण ये वेटलैंड काफी स्वच्छ हुआ करता था। मगर बाद में ईस्ट कोलकाता वेटलैंड अनदेखी का शिकार हो गया और यहां निर्माणकार्य तेजी से होने लगा। जब वेटलैंड रामसर साइट के अंतर्गत आया तब भी आरोप है कि यहाँ अवैध निर्माण हुआ था और अब भी हो रहा है। इस अवैध निर्माण के खिलाफ पर्यावरणविदों ने कई बार आवाज उठायी है। इस मामले में कलकत्ता हाईकोर्ट की ग्रीन बेंच और नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने भी वेटलैंड को भरने और यहाँ अवैध निर्माण पर रोक लगाई और अवैध निर्माण को तोड़ने का फैसला सुनाया। लेकिन बावजूद यहाँ कोर्ट के निर्देशों की अवहेलना की गयी और ठेंगा दिखाया गया। "
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east kolkata wetlands (pics taken from social media) |
कोलकाता : कोलकाता का ईस्ट कोलकाता वेटलैंड दुनिया का यूनिक wetlands है। ये वेटलैंड रामसर साइट (1208) के अंतर्गत आता है। रामसर साइट के अंतर्गत आने वाले वेटलैंड पर किसी भी प्रकार का निर्माण अवैध है। दरअसल, वर्ष 2002 के 19 अगस्त को रामसर कन्वेंशन के तहत इस वेटलैंड को अंतर्राष्ट्रीय महत्व का वेटलैंड घोषित किया गया था।।
दरअसल , ईस्ट कोलकाता वेटलैंड एक ऐसा वेटलेंड है जहाँ महानगर से निकलने वाले गंदे पानी का प्राकृतिक तरीके से परिशोधन होता है यानी बिना किसी मशीन के इस्तेमाल के गन्दा पानी स्वच्छ हो जाता है। वरना गंदे पानी को साफ़ करने के लिए करोड़ों की मशीन की जरुरत होती है।
इस वजह से ईस्ट कोलकाता वेटलैंड को रामसर साइट (1208) के अंतर्गत शामिल किया गया था। रामसर समझौता एक अंतर्राष्ट्रीय समझौता है जो वेटलैंड के संरक्षण और इनके दिर्घावधि इस्तेमाल पर काम करता है। इसके तहत भारत के 25 वेटलैंड को शामिल किया गया ह।
हालांकि , जब ब्रिटिश साम्राज्य थी तब भी इस वेटलैंड की देखभाल की जाती थी। ब्रिटिश ने वेटलैंड को भरने या इस पर किसी प्रकार के निर्माण कार्य पर सख्त मनाही की थी जिसके कारण ये वेटलैंड काफी स्वच्छ हुआ करता था।
मगर बाद में ईस्ट कोलकाता वेटलैंड अनदेखी का शिकार हो गया और यहां निर्माणकार्य तेजी से होने लगा।जब वेटलैंड रामसर साइट के अंतर्गत आया तब भी आरोप है कि यहाँ अवैध निर्माण हुआ था और अब भी हो रहा है। इस अवैध निर्माण के खिलाफ पर्यावरणविदों ने कई बार आवाज उठायी है।
इस मामले में कलकत्ता हाईकोर्ट की ग्रीन बेंच और national green tribunal ने भी वेटलैंड को भरने और यहाँ अवैध निर्माण पर रोक लगाई और अवैध निर्माण को तोड़ने का फैसला सुनाया।
लेकिन बावजूद यहाँ कोर्ट के निर्देशों की अवहेलना की गयी और ठेंगा दिखाया गया। इस लॉक डाउन में भी यहाँ अवैध निर्माण किया गया जिसको लेकर पर्यावरणविदों ने नाराजगी जताई है।
125 स्क्वायर किमी में फैले वेटलैंड पर 60 प्रतिशत से ज्यादा हुई है अवैध निर्माण
पर्यावरणविदों के समूह का कहना है, ईस्ट कोलकाता वेटलैंड साइंस सिटी से लेकर सोनारपुर तक करीब 125 स्क्वायर किलोमीटर में फैला हुआ है। इस वेटलैंड को संरक्षित रखने के लिए ईस्ट कोलकाता वेटलैंड अथॉरिटी सहित कई और अथॉरिटी बनाई गई है।
बावजूद इसके इस वेटलैंड पर अवैध निर्माण किया गया। वेटलैंड पर 60 प्रतिशत से ज्यादा अवैध निर्माण किया गया है। दरअसल , इसमें वेटलैंड को भरना, वेटलैंड की खरीद - फरोख्त करना और अवैध निर्माण शामिल हैं। इस वेटलैंड के तहत चौभागा और मुकुंदपुर इलाका भी पड़ता है।
ईस्ट कोलकाता वेटलैंड का अंतिम छोर विद्याधर नदी तक जाता है। इसी वेटलैंड पर पीसी चंद्र गार्डन सहित कई इमारतों का निर्माण किया गया है। पर्यावरणविदों के समूह का कहना है , वेटलैंड पर ही हेरिटेज स्कूल बनाया गया है। क्योंकि ये मानव कल्याण से जुड़ा हुआ है।
मगर इस वेटलैंड को कमर्शियल पर्पस के तहत इस्तेमाल करना गैरकानूनी है। पूर्व मेयर शोवन चटर्जी भी यहाँ साइंस सिटी से लेकर एयरपोर्ट तक एक फ्लाईओवर बनवाना चाहते थे जिसका भी पर्यावरणविदों ने खिलाफत की थी और इस प्रोजेक्ट को रद्द कर दिया गया था।
वहीं, कोर्ट के निर्देशों पर अब तक केवल 10 प्रतिशत ही अवैध निर्माण तोड़े गए हैं। बाकियों पर कार्रवाई नहीं की गयी है। वेटलैंड पर अवैध निर्माण से कोलकाता की सीवेरज व्यवस्था भी चरमरा गयी है।
हालांकि , कुछ दिन पहले ही मुकुंदपुर इलाके में वेटलैंड के बड़े हिस्सों को पाटने का काम चल रहा था जिसके खिलाफ पर्यावरणविदों ने आवाज उठायी। इसके बाद कोलकाता नगर निगम हरकत में आया और इस अवैध निर्माण को तोड़ा गया।
वेटलैंड पर फेंके गए कचरे से बायोगैस बनाया जा सकता है , लेकिन प्रोजेक्ट अधर में
पर्यावरणविद् सौमेंद्र मोहन घोष ने बताया , वेटलैंड पर ही धापा है जहाँ सालों से पूरे महानगर का कचरा फेंका जाता है। यहाँ कचरों का ढेर लगा हुआ है, जिन्हें हटाना मुश्किल है। इन कचरों में मीथेन गैस की मात्रा सबसे ज्यादा है। मीथेन गैस से बायो गैस तैयार किया जा सकता है।
घोष ने बताया , कचरे से बायो गैस बनाने के लिए उन्होंने ऑस्ट्रेलिया की एक टीम से संपर्क किया था। इसके बाद उन्होंने इस प्रोजेक्ट को लेकर केएमसी और ऑस्ट्रेलिया टीम की एक मीटिंग भी तय की थी लेकिन मीटिंग के बावजूद उक्त प्रोजेक्ट अधर में ही लटक गया। इसके पीछे कई कारण है।
खैर, इन कचरों को रीसाइक्लिंग कर इनसे फ़र्टिलाइज़र और एनर्जी तैयार की जा सकती है। इन बायोगैस का इस्तेमाल ऑटो चलाने और स्ट्रीट लाइट जलाने में किया जा सकता है। घोष ने बताया, रामसर साइट (1208 ) के तहत इस वेटलैंड के आने के कारण यहाँ किसी भी प्रकार का निर्माण अवैध है।
इस बाबत धापा जो की वेटलैंड पर बना है वहां कुछ दिन पहले केएमसी की तरफ से कचरा रीसाइक्लिंग करने का प्रोजेक्ट स्थापित किया गया था जिसे बाद में बंद करवा दिया गया क्योंकि वो कोर्ट के निर्देशों की अवहेलना थी। वहीं घोष ने बताया , धापा में कचरे के ढेर को देखते हुए अब बजबज में कचरा फेंकने के लिए जगह की तलाश की जा रही हैं। कोलकाता का कचरा अब बजबज में फेंका जायेगा।
वहीं सौमेंद्र मोहन घोष ने बताया , अब सुंदरवन भी रामसर साइट के अंतर्गत आ गया है। रामसर साइट के अंतर्गत आने वाले भूमि या क्षेत्र पूरी तरह नो प्लास्टिक जोन होना चाहिए। इस बाबत यहाँ ये भी देखना जरुरी है कि सुंदरवन पर कोई अवैध निर्माण हो रहा है या नहीं।
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