KOLKATA WATERLOGGING : अगर ऐसी रही अवस्था 30 साल बाद ख़त्म हो जायेगा कोलकाता ! - ReporterBabita.com

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Monday, September 20, 2021

KOLKATA WATERLOGGING : अगर ऐसी रही अवस्था 30 साल बाद ख़त्म हो जायेगा कोलकाता !

  • दुआरे सरकार नहीं हमें चाहिए canal सफाई योजना व रास्ता मरम्मत योजना : पर्यावरणविद 

" कुछ लोगों को तो अपना घर छोड़कर दूसरी जगह शरण लेने को मजबूर होना पड़ा। अगर ऐसी हालत रही तो 30  साल बाद कोलकाता ख़त्म हो जायेगा। कोलकाता का नामो- निशान नहीं रहेगा , जबकि बंगाल सरकार कोलकाता को लन्दन बनाना चाहती है।  मगर दस साल बाद महानगर नहीं रहेगा, ऐसा ही आशंका जता रहे हैं पर्यावरणविदों के समूह। सवाल यहाँ ये भी है कि आखिर  कोलकाता की ऐसी हालत क्यों हो रही है ? इसको लेकर कोलकाता के पर्यावरणविदों के समूहों ने कई तथ्य उजागर किये है और प्रशासन से इस मामले में उचित कदम उठाने को कहा है।  "

waterlogging in kolkata


KOLKATA WATERLOGGING : कोलकाता में पिछले 10 सालों में 150 मिलीमीटर से ज्यादा बारिश नहीं हुई है लेकिन कम बारिश में ही कोलकाता पानी - पानी हो जाता है। ऐसा ही दावा है कोलकाता के पर्यावरणविदों के समूहों का। सोमवार को भी 100 मिलीमीटर की बारिश में पूरा कोलकाता जलमग्न हो गया। 

सड़कों से लेकर लोगों के घरों तक पानी घुस गया।  कुछ लोगों को तो अपना घर छोड़कर दूसरी जगह शरण लेने को मजबूर होना पड़ा। अगर ऐसी हालत रही तो 30  साल बाद कोलकाता ख़त्म हो जायेगा। कोलकाता का नामो- निशान नहीं रहेगा , जबकि बंगाल सरकार कोलकाता को लन्दन बनाना चाहती है।  

मगर दस साल बाद महानगर नहीं रहेगा, ऐसा ही आशंका जता रहे हैं पर्यावरणविदों के समूह। सवाल यहाँ ये भी है कि आखिर  कोलकाता की ऐसी हालत क्यों हो रही है ? इसको लेकर कोलकाता के पर्यावरणविदों के समूहों ने कई तथ्य उजागर किये है और प्रशासन से इस मामले में उचित कदम उठाने को कहा है। 

 पर्यावरणविद सौमेंद्र मोहन घोष ने भी इस मामले में अपनी राय बताई और साथ ही कोलकाता के जलमग्न होने के पीछे के कारणों से भी अवगत कराया है।  


इन कारणों से कोलकाता थोड़ी ही बारिश में हो रहा है जलमग्न 

पर्यावरणविद सौमेंद्र मोहन घोष ने बताया, ये बहुत ही सोचनीय घटना है कि थोड़ी ही बारिश में पूरा महानगर पानी - पानी हो जाता है।  सड़क हो या घर सब पानी में डूब जाते हैं।  आज की बारिश से भी पूरे महानगर की हालत ख़राब हो गयी। महानगर की इस हालत के पीछे कई कारण है। 

 सौमेंद्र मोहन घोष ने बताया, इन सब के पीछे अगर किसी का हाथ है तो वो है कोलकाता के कैनाल (नालों या खाल ) का। इन कैनाल को सर्कुलर कैनाल भी कहा जाता है।  इन कैनाल के कारण बारिश का पानी बाहर नहीं निकल पा रहा है और उसी के कारण कोलकाता के चारों तरफ पानी भर जा रहा है।  

घोष ने बताया, बंगाल के पूर्व मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य के समय इन कैनाल में वाटर टैक्सी चलाने की योजना बनाई गयी थी लेकिन हम सब ने कहा था कि इन कैनाल को परिवहन टूरिज्म में बदलना आसान नहीं है।  दरअसल, कैनाल की गहराई कम से कम 20 फुट होनी चाहिए लेकिन यहाँ कैनाल की गहराई 6  फुट से 10 फुट ही है। 

कैनाल  की अनदेखी के कारण इनकी हालत बदतर है। इस बाबत कैनाल की सफाई ज़रूरी है और कैनाल के गंदे पानी को साफ़ करने के लिए सीवेरज ट्रीटमेंट प्लांट लगाने की जरूरत है। मगर ऐसा नहीं हुआ।  दरअसल, इन कैनाल में गन्दा पानी भर जाता है और बारिश के समय इन कैनाल के गेट को भी बंद कर दिया जाता है.

 जिससे बारिश का पानी बाहर नहीं निकल पाता है और सड़क पर ही गन्दा पानी भर जाता है।  महानगर और आसपास बेलियाघाटा, बागजोला , चोरियाल खाल और केष्टोपुर सहित कई कैनाल है जिनकी सफाई नहीं हो पाई है।  इन कैनाल की अनदेखी कोलकाता के लिए बहुत खतरनाक साबित हो सकती है।  

car swim in water in kolkata


ऐसे होगा कोलकाता ख़त्म अगर नहीं उठाया गया कदम 

घोष बताते है, इन कैनाल की अनदेखी के कारण 30  साल बाद कोलकाता ख़त्म हो जायेगा।  दरअसल, पानी के 10  से 12  घंटे तक सड़क पर ही रहने से एक तो महानगर में जल प्रदूषण बढ़ेगी वहीं इससे कई तरह की बीमारियां भी पैदा हो जाएगी।  

गंदे पानी की वजह से त्वचा रोग सहित पेट की गंभीर बीमारियां भी हो जाएगी।  वहीं कोलकाता के आसपास के ट्यूबवेल भी गंदे पानी से भर गए हैं और इससे डेंगू जैसी बिमारियों के फैलने का भी खतरा है।  अगर समय रहते स्थिति पर काबू नहीं किया गया तो कोलकाता को ख़त्म होने से कोई नहीं बचा पायेगा।  


इस तरह से महानगर को बचाया जा सकता है 

पर्यावरणविद सौमेंद्र मोहन घोष ने बताया, महानगर को दुआरे सरकार की नहीं बल्कि कैनाल सफाई योजना और रास्ता मरम्मत योजना की जरूरत है।  कैनाल की सफाई से बारिश का पानी तुरंत चला जायेगा और इससे कोलकाता में पानी जमने की समस्या भी ख़त्म हो जाएगी।  

घोष का कहना है, कोलकाता को जलमग्न से बचाने के लिए इन कदम को उठाने की जरूरत है।  इनमें सबसे पहले मौसम का पूर्वानुमान करना है। आजकल थ्रीडी सेटेलाइट सिस्टम से 5 से 7  दिन पहले ही बारिश को लेकर जानकारी मिल जाती है।  

उसके बाद ज्वार और भाटा के बारे में जानकारी रखना पड़ेगा। ऐसा करने से पता चल जायेगा कि कब हाई ड्रेन को खोलना है और कब बंद करना है।  इसके बाद ड्रेन में प्लास्टिक जाने से रोकने के लिए केएमसी कर्मियों को लाठी के साथ ही नेट भी देने की जरूरत है ताकि ड्रेन में प्लास्टिक जमा नहीं हो सके और पानी सीधे नदी में चली जाए। 

आजकल देखा जा रहा है ड्रेन में प्लास्टिक पम्पिंग स्टेशन में घुस जा रहे है और मशीन को ख़राब कर दे रही है।  घोष ने बताया, आज की बारिश में भी प्रशासन की लापरवाही साफ़ दिख रही है। साथ ही यहाँ समन्वय का भी अभाव है। 

रविवार की रात 12 बजे ज्वार आया था और ये स्थिति 4 से 5 घंटे तक रहती है इसके बाद तुरंत हाई ड्रेन खोल दिया जाता तो सोमवार को स्थिति इतनी नहीं बिगड़ती है।  मगर ऐसा नहीं किया गया।  सुबह 9  से  10 बजे केएमसी कर्मियों ने कदम उठाया जिसके कारण पानी निकलने की प्रक्रिया धीरे हो गई और लोगों को भारी परेशानियों का सामना करना पड़ा।  

1 comment:

  1. बहुत सुंदर। शीर्षक भी सुन्दर है।

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