- प्रदूषण बढ़ने के साथ ही डोमेस्टिक एलपीजी की किल्लत की आशंका
- पुलिस चलाती है छापामारी अभियान, पर फिर शुरू हो जाता है इनका खेल
"काटा तेल यानी पेट्रोल और डीजल में खराब क्वालिटी की नेप्था और केरोसिन मिलाकर काटा तेल तैयार किया जाता है, जिसकी कीमत कम होती है। इसके इस्तेमाल से लोगों को काफी समस्या होती थी। इसके बाद ही एलपीजी गैस से ऑटो चलाने का निर्णय लिया गया था। अब एलपीजी गैस से काटा गैस तैयार किया जा रहा है यानी डोमेस्टिक एलपीजी से गैस निकालकर दूसरे कंटेनर में भरकर काटा गैस तैयार हो रहा है।"
Kolkata : मिलावट हर चीज में ही है। अब तो एलपीजी गैस भी इस श्रेणी में शामिल हो चुकी है जब से ऑटो ड्राइवरों ने डोमेस्टिक एलपीजी का इस्तेमाल शुरू किया है। पर्यावरण की रक्षा के लिए ऑटो को पेट्रोल से गैस में तब्दील किया गया।
इसके लिए ऑटो गैस फिलिंग स्टेशन भी बनाई गई और ऑटो में ऑटो गैस डालने की अनिवार्यता की गई। मगर जिस उद्देश्य से पेट्रोल से चलने वाली ऑटो को गैस ऑटो में तब्दील किया गया था वो उद्देश्य अब अधर में लटकता दिख रहा है।
अवैध तरीके से डोमेस्टिक एलपीजी गैस का ऑटो में इस्तेमाल ने महानगर के पर्यावरणविदों की चिंता बढ़ा दी है। पहले काटा तेल पर्यावरणविदों के लिए चिंता का विषय था अब उसके साथ काटा गैस ने इस चिंता को और ज्यादा बढ़ा दिया है।
काटा तेल यानी पेट्रोल और डीजल में खराब क्वालिटी की नेप्था और केरोसिन मिलाकर काटा तेल तैयार किया जाता है, जिसकी कीमत कम होती है। इसके इस्तेमाल से लोगों को काफी समस्या होती थी।
इसके बाद ही एलपीजी गैस से ऑटो चलाने का निर्णय लिया गया था। अब एलपीजी गैस से काटा गैस तैयार किया जा रहा है यानी डोमेस्टिक एलपीजी से गैस निकालकर दूसरे कंटेनर में भरकर काटा गैस तैयार हो रहा है।
इस काटा गैस से न सिर्फ पर्यावरण प्रभावित हो रहा है बल्कि डोमेस्टिक एलपीजी के किल्लत होने की भी आशंका जताई जा रही है। सिर्फ इतना ही नहीं काटा गैस कई मुसीबतों को भी दावत दे रही है, इसका कारण ये है कि डोमेस्टिक एलपीजी और ऑटो गैस दोनों अलग है और दोनों का पर्यावरण पर प्रभाव भी अलग होता है।
ये है डोमेस्टिक एलपीजी और ऑटो गैस में अंतर
पर्यावरणविद सौमेंद्र मोहन घोष ने बताया, एलपीजी दो प्रकार के होते हैं। उनमें एक डोमेस्टिक एलपीजी और दूसरा ऑटो में इस्तेमाल होने वाला एलपीजी। डोमेस्टिक एलपीजी में प्रोपेन की मात्रा कम होती है जबकि बूटेन की मात्रा ज्यादा होती है।
बूटेन घटिया किस्म का गैस है। डोमेस्टिक एलपीजी में जहां अच्छी गैस प्रोपेन की मात्रा 40 प्रतिशत होती है और बूटेन की मात्रा 60 प्रतिशत तक होती है। वहीं, ऑटो गैस में इसका ठीक उल्टा होता है। ऑटो गैस में 60 प्रतिशत प्रोपेन होता है जबकि 40 प्रतिशत बूटेन होता है।
इससे प्रदूषण कम होता है। हालांकि, डोमेस्टिक एलपीजी की तुलना में ऑटो गैस महंगा होता है। डोमेस्टिक एलपीजी किलो में आती है जबकि ऑटो गैस लीटर में आता है। किलो की तुलना में लीटर ज्यादा होता है।
उदाहरण के तौर पर अगर एक किलो डोमेस्टिक एलपीजी होती है तो ऑटो गैस 1.900 लीटर होता है। यानी जहां एक किलो डोमेस्टिक एलपीजी में ऑटो ड्राइवर को करीब 2 लीटर तक गैस मिल जाती ।
ऑटो ड्राइवरों को डोमेस्टिक एलपीजी में ज्यादा गैस मिलती है जिससे उनको माइलेज के साथ ही ये सस्ता भी पड़ता है। इसके कारण आरोप है, ऑटो ड्राइवर डोमेस्टिक एलपीजी का इस्तेमाल कर रहे हैं।
डोमेस्टिक एलपीजी के इस्तेमाल से हो सकती है कई असुविधाएं
पर्यावरणविदों समूहों के अनुसार, ऑटो में डोमेस्टिक एलपीजी के इस्तेमाल से कई रिस्क फैक्टर सामने आ रहे हैं। सबसे पहले डोमेस्टिक एलपीजी से प्रदूषण का स्तर सबसे ज्यादा बढ़ रहा है।
साथ ही गैस manual machine से या कभी इलेक्ट्रिकल मशीन से निकाला जाता है। मगर manual machine से गैस निकालने का चलन ज्यादा है जिससे बड़ी दुर्घटना घटने की आशंका है।
ऑटो ड्राइवर्स भी गैस भरने के दौरान काफी लापरवाही बरतते हैं। वहीं, डोमेस्टिक एलपीजी के इस्तेमाल से ऑटो के गैस किट, वाल्व्स और इंजन हेड में कार्बन डिपोजिशन होता है।
ऐसा होने से ऑटो के गर्म होने और आग लगने की ज्यादा संभावना है। इसके अलावा अगर कोई ऑटो 3 महीने तक लगातार डोमेस्टिक एलपीजी का इस्तेमाल करता है तो उक्त ऑटो स्मोक एमिशन टेस्ट में फेल हो जायेगा।
इसके साथ ही इसके कारण गैस रिफिलिंग स्टेशन का राजस्व भी कम हो रहा है और अवैध तरीके से काटा गैस बनाने को लेकर सक्रियता बढ़ती जा रही है।
उज्जवला योजना से जुड़ रहे हैं इसके तार
पर्यावरणविदों समूहों की मानें तो ऑटो में डोमेस्टिक एलपीजी के इस्तेमाल में उज्जवला योजना का भी कम हाथ नहीं है। कोयला और लकड़ी से होने वाली धुएं से मुक्ति दिलाने के लिए केंद्र सरकार ने उज्जवला योजना की शुरुआत की है, जिसके तहत पहला गैस कनेक्शन और सिलेंडर फ्री में मुहैया करवाई जाती है।
मगर पर्यावरणविदों का कहना है, उज्जवला योजना ने ऑटो में डोमेस्टिक एलपीजी के इस्तेमाल को बढ़ावा दिया है। दरअसल, डोमेस्टिक एलपीजी सिलेंडर की कीमत ज्यादा होने से गरीब तबका एलपीजी सिलेंडर खरीद नहीं पा रहा हैं और उनके खाली गैस सिलेंडर का इस्तेमाल ऑटो में अवैध तरीके से गैस भरने में किया जा रहा है।
इस तरह से ऑटो में डोमेस्टिक एलपीजी के इस्तेमाल में रोक लगाई जा सकती है
पर्यावरणविद सौमेंद्र मोहन घोष के बताया, जब बंगाल में ऑटो के लिए ऑटो गैस नहीं लाया गया था तब भी अवैध तरीके से कुछ ऑटो ड्राइवर एलपीजी गैस का इस्तेमाल कर ऑटो चलाया करते थे।
वर्ष 2005 में ऑटो में गैस भरने को लेकर नोटिफिकेशन जारी किया गया। वर्ष 2009 से ऑटो में अवैध तरीके से डोमेस्टिक एलपीजी का इस्तेमाल किया जा रहा है। उन्होंने बताया, महानगर के ग्रामीण इलाकों में सबसे ज्यादा इस तरह की गतिविधियां देखने को मिल रही है।
दरअसल, वहां गैस फिलिंग स्टेशन नहीं होती है जिससे वहां इस तरह से अवैध काटा गैस तैयार की जा रही है। उनका कहना है, पुलिस छापामारी अभियान चलाती है लेकिन बाद में फिर वही स्थिति हो जाती है। सिर्फ स्थान बदलता है लेकिन क्रियाकलाप वैसे ही चलता है।
उन्होंने कहा, अगर ऑटो में अवैध डोमेस्टिक एलपीजी के इस्तेमाल को रोकना है तो समय - समय पर एनफोर्समेंट ब्रांच, तेल कंपनी और पुलिस को साथ में मिलकर अभियान चलाना होगा। एलपीजी के जगह सीएनजी के इस्तेमाल को लेकर गंभीरता से विचार करने की जरूरत है।
उन्होंने ये भी सुझाव दिया कि प्रत्येक एलपीजी सिलेंडर में रेडियो फ्रीक्वेंसी आइडेंटिफिकेशन टैग लगाने की जरूरत है। इससे एलपीजी का इस्तेमाल कहां हो रहा है इसका पता चल जायेगा। वहीं डोमेस्टिक एलपीजी के डिस्ट्रीब्यूशन को लेकर भी डिस्ट्रीब्यूटर्स पर नजर रखने की जरूरत है।
No comments:
Post a Comment