- आर्थिक तंगी की मार ने तोड़ी पटाखा व्यवसायियों की कमर, लिया ऐसा ऐतिहासिक फैसला : बाबला रॉय
- आने वाले दिनों में बंगाल के पटाखा व्यवसायी हो जायेंगे लुप्त, रोजी - रोटी के पड़ रहे हैं लाले
"एशिया का सबसे बड़ा मेला, सबसे ज्यादा सतर्कता मानकर आयोजित होने वाला ये मेला इस बार नहीं लगाया जायेगा। बाबला रॉय ने बताया , वर्ष 1996 में हाई कोर्ट के जज भगवती प्रसाद द्वारा पटाखों पर नियंत्रण के बाद करीब दो सालों तक पटाखा बाज़ार उर्फ़ पटाखा मेला नहीं लगाया गया था। पहले बड़ाबाजार में लगाया गया था लेकिन पुलिस द्वारा मना किये जाने के बाद हमने शहीद मीनार में मेला लगाना शुरू किया। 1998 से मैदान के निकट शहीद मीनार में पटाखा मेला का आयोजन किया जा रहा है। उन्होंने बताया , केंद्र सरकार के डिफेन्स विभाग से लड़कर हमने इस पटाखा मेला की शुरूआत की थी। जहाँ डिफेन्स की तरफ से पुस्तक मेला , हस्त शिल्प मेला और चर्म शिल्प मेला को बंद कर दिया गया था वहां हम लगातार लड़ाई करते हुए इस पटाखा मेला का आयोजन करते आ रहे थे। "
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KOLKATA : एशिया का सबसे बड़ा मेला, पटाखों का मेला जो कोलकाता के दिल मैदान के निकट स्थित शहीद मीनार में लगाया जाता था , वो अब इस साल नहीं लगाई जाएगी। पिछले 23 सालों से सजती आयी पटाखा मेला इस बार आर्थिक तंगी और कोरोना महामारी का शिकार हो गई।
इस बारे में सारा बांग्ला आतशबाजी उन्नयन समिति के चैयरमेन बाबला रॉय ने कहा , एक ऐतिहासिक मेले का अंत हो गया। एशिया का सबसे बड़ा मेला, सबसे ज्यादा सतर्कता मानकर आयोजित होने वाला ये मेला इस बार नहीं लगाया जायेगा।
बाबला रॉय ने बताया , वर्ष 1996 में हाई कोर्ट के जज भगवती प्रसाद द्वारा पटाखों पर नियंत्रण के बाद करीब दो सालों तक पटाखा बाज़ार उर्फ़ पटाखा मेला नहीं लगाया गया था। पहले बड़ाबाजार में लगाया गया था लेकिन पुलिस द्वारा मना किये जाने के बाद हमने शहीद मीनार में मेला लगाना शुरू किया।
1998 से मैदान के निकट शहीद मीनार में पटाखा मेला का आयोजन किया जा रहा है। उन्होंने बताया , केंद्र सरकार के डिफेन्स विभाग से लड़कर हमने इस पटाखा मेला की शुरूआत की थी। जहाँ डिफेन्स की तरफ से पुस्तक मेला , हस्त शिल्प मेला और चर्म शिल्प मेला को बंद कर दिया गया था .
वहां हम लगातार लड़ाई करते हुए इस पटाखा मेला का आयोजन करते आ रहे थे। मगर इस बार मेले को आर्थिक आभाव के कारण बंद करने का निर्णय लिया गया है।
इसलिए शहीद मीनार का ये बाजार कहलाता था पटाखा मेला
शहीद मिनार में लगने वाला पटाखा बाजार सिर्फ बाजार नहीं था बल्कि ये एक मेला था यानी पटाखों का मेला। इस बारे में बाबला रॉय बताते है , शहीद मीनार में लगने वाले इस पटाखा मेले में एक समय लाखों - लाखों लोग आया करते थे। यहां की रौनक ऐसी थी कि लोग घूमने के लिए भी आते थे।
यहां पटाखा बिकने के साथ ही साथ मेला लगता था। बाबला रॉय ये भी बताते है , कई लोग ऐसे भी होते थे जो सिर्फ मेला घूमने आते थे। वे पटाखें नहीं खरीदते थे लेकिन मेले में घूमकर और खा - पीकर घर लौट जाते थे। इस मेले के बाद ही महानगर के कई जगह पटाखों का बाजार लगना शुरू हुआ।
हालाँकि मेला सिर्फ इसी मैदान में लगता था। इस बार बाकी जगहों पर पटाखा बाजार लगेगा लेकिन ऐतिहासिक शहीद मीनार में अब पटाखा मेला नहीं लगेगा।
शुरूआत में 100 स्टाल लगते थे लेकिन बाद में कम होती चली गई संख्या
बाबला रॉय ने बताया, जब इस ऐतिहासिक पटाखा मेला की शुरूआत की गई थी उस समय इस मेले में 100 स्टाल लगाए जाते थे। लेकिन बाद में धीरे - धीरे स्टाल की संख्या कम होती चली गई। अंत में स्टाल की संख्या 27 तक पहुँच गई। स्टाल की संख्या कम होने के बावजूद खर्चों में कोई कमी नहीं आयी।
खर्चा उससे ज्यादा ही होने लगा। एक स्टाल लगाने में कम से कम 2 से ढाई लाख का खर्च आता है। मगर, साल दर साल बिक्री कम होती गई लेकिन खर्च बढ़ता गया। बाबला रॉय ने बताया , पिछले साल कोरोना के बावजूद शहीद मीनार में पटाखों का मेला सजाया गया था।
मगर उस दौरान पटाखा व्यवसायियों को 30 से 35 प्रतिशत का नुकसान झेलना पड़ा था। इस बाबत इस बार पटाखा व्यवसायियों ने इस मेले में हिस्सा लेने से इंकार कर दिया क्योंकि वे अब और नुकसान नहीं उठा सकते हैं। इस बार हालात ऐसे है कि 25 व्यवसायी भी ऐसे नहीं है जो मेले में हिस्सा लेने के लिए आगे बढ़े।
कई कारणों से मेले को बंद करने का लिया गया फैसला
बाबला रॉय ने बताया , सबसे पहली वजह आर्थिक तंगी है। दरअसल , मेले के लिए डिफेन्स को काफी रुपया देना पड़ता है जो इस बार संभव नहीं है। इस बार कोरोना ने सभी व्यवसायियों की कमर तोड़ दी है। दूसरा हमारे पास हाई टेंशन इलेक्ट्रिसिटी भी नहीं होती है जिसे हमें किराये पर लेना होता है जो काफी महंगा पड़ता है।
इसके अलावा पुलिस और दमकल के लिए अलग से स्टाल तैयार करना पड़ता है। वहीं यहाँ पानी की भी व्यवस्था करनी पड़ती है और हमारे स्टाल में सुरक्षा के लिहाज से cctv और सिक्योरिटी की भी व्यवस्था करनी पड़ती है जिसके लिए काफी खर्च होता है।
इसके अलावा , पटाखा मेला की अनुमति काफी दिन बाद मिलती है। ऐसे में स्टाल तैयार करने के लिए समय भी ठीक से नहीं मिल पाता है। वहीं 7 दिनों के इस बाजार में केवल 2 से 3 दिन ही बिक्री होती है जो अभी पूरी तरह घट गई है। दूसरा , पटाखों की धर - पकड़ है , जो पटाखें 90 डेसीबल से कम आवाज वाले होते हैं उन्हें भी पकड़ा जाता है।
पटाखा बनाने वाले मजदूर भी छोड़ रहे हैं ये व्यवसाय
इस मामले में भी बबला रॉय ने बताया, पहले पटाखा व्यवसाय से करीब 31 लाख लोग जुड़े हुए थे लेकिन अब इनकी संख्या 22 -23 लाख तक पहुँच गई है। पटाखों की मांग कम होने से पटाखा बनाने वाले मजदूर इस काम को छोड़ अन्य व्यवसाय से जुड़ रहे हैं।
कुछ सब्ज़ी बिक्री कर रहे हैं तो कुछ दूसरे काम कर रहे हैं। पहले बंगाल पटाखों के निर्माण में दूसरे स्थान पर था लेकिन अब चौथे नंबर पर पहुँच गया है। तमिलनाडु सबसे आगे हैं।
बाबला रॉय ने बताया , पटाखा व्यवसायियों और मजदूरों के लिए अभी रोजी - रोटी के लाले पड़ गए हैं। अगर समय रहते कोई व्यवस्था नहीं किया गया तो ये व्यवसाय बंद हो जायेगा। मजदूर खुदकुशी करने लगेंगे।
ग्रीन पटाखों को लेकर कोई फार्मूला नहीं दी गई , जिससे बढ़ रही है परेशानी
पटाखों से प्रदूषण बढ़ता है। इसके लिए सुप्रीम कोर्ट ने ग्रीन पटाखों को जलाने की अनुमति दी है। मगर ग्रीन पटाखों को लेकर बाबला रॉय का कहना है , ग्रीन पटाखों को बनाने के लिए किस तरह का केमिकल और मसाला लगेगा उसे लेकर कोई फार्मूला नहीं दिया गया है।
अभी तक ग्रीन पटाखों को लेकर कोई एक्सपेरिमेंट भी नहीं किया गया है। हम ग्रीन पटाखा बनाना तो चाहते हैं लेकिन हमारे पास ग्रीन पटाखों को बनाने के लिए क्या सामग्री लगेगी और क्या इसकी प्रक्रिया है , इसको लेकर कोई जानकारी नहीं दी गई है। उनका ये भी आरोप है , तमिलनाडु के कुछ व्यवसायी रुपये के दम पर पटाखों पर ग्रीन पटाखों का स्टाम्प लगवा लेते हैं और उसे बाजार में छोड़ देते हैं।
ऐसा करना बिलकुल गलत है। हम चाहते हैं कि सरकार ग्रीन पटाखों को लेकर जानकारी और फार्मूला साझा करें। वहीं उन्होंने सरकार से चीनी स्काई लालटेन और लाइट्स की बिक्री पर रोक लगाने का भी अनुरोध किया है।
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