- कोलकाता पुलिस के अधिकारीयों की याद हुई ताजा
न्यू टाउन की शूटआउट घटना ने 2000 साल की एक एनकाउंटर की याद को ताजा कर दिया। इससे पहले बंगाल पुलिस के अधीन रहे तिलजला थाने में 90 के दशक में घटना घटी थी। उसके बाद 2000 में घटना घटी थी। कोलकाता में वर्ष 2000 में उस घटना के बाद पुलिस और गैंगस्टर के बीच शूटआउट की घटना फिर कभी नहीं हुई थी।
कोलकाता : कोलकाता का न्यू टाउन इलाका आज सुर्ख़ियों में छाया हुआ है। न्यू टाउन के एक प्रसिद्ध आवासन में बुधवार को हुई पुलिस और पंजाब के गैंगस्टर के बीच गोलीबारी की घटना बड़ी फ़िल्मी स्टाइल में घटी। इस घटना ने कोलकाता पुलिस के अधिकारियों के यादों को भी ताजा कर दिया था। कोलकाता में इस तरह की घटना पिछले दो दशकों में नहीं घटी थी। कोलकाता पुलिस के एक अधिकारी बताते है, न्यू टाउन की शूटआउट घटना ने 2000 साल की एक एनकाउंटर की याद को ताजा कर दिया। इससे पहले बंगाल पुलिस के अधीन रहे तिलजला थाने में 90 के दशक में घटना घटी थी। उसके बाद 2000 में घटना घटी थी। कोलकाता में वर्ष 2000 में उस घटना के बाद पुलिस और गैंगस्टर के बीच शूटआउट की घटना फिर कभी नहीं हुई थी। बता दें कि न्यू टाउन में पंजाब के दो कुख्यात गैंगस्टर जयपाल भुल्लर और जस्सी खरार की बंगाल स्पेशल टास्क फाॅर्स ( एसटीएफ) द्वारा एनकाउंटर के बाद ये घटना अभी टॉक ऑफ़ डी टाउन हो गयी है। दिनदहाड़े पुलिस के इस ऑपरेशन से जहां न्यू टाउन के उस आवासन के लोग सहमे है वहीँ कोलकाता पुलिस के कुछ अधिकारी अपने उन दिनों की यादों में चले गए जब इस तरह की घटना से उन्हें भी रूबरू होना पड़ा था। कोलकाता पुलिस के खुफिया विभाग में डकैती सेक्शन है जो कोलकाता पुलिस के जुरिडिक्शन में होने वाली सभी डकैती की घटनाओं की जांच करती है और डकैतों को जेल पहुंचाती हैं। यहां डकैती सेक्शन का उल्लेख करने के पीछे यह कारण है कि डकैती सेक्शन की टीम ने ही साल 2000 में इस तरह का एनकाउंटर कर डकैतों का सफाया किया था।
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pics from punjab police |
सिर्फ किरदार बदले, लेकिन घटना ठीक वैसी ही घटी जैसा दो दशक पहले घटी थी
कोलकाता पुलिस के अधिकारी आगे बताते है, न्यू टाउन की घटना जब सामने आई तब हमें अपने दिन याद आ गए। करीब दो दशकों पहले कोलकाता और आसपास इलाके में बैंक डकैती काफी हुआ करती थी। बैंक डकैती का सरगना वाजिद अकुंजी था। डकैती करना उसे विरासत में मिली थी। वो सन्देशखाली का रहने वाला था मगर डकैती की लत ने उसे कोलकाता में डेरा जमाने के लिए मजबूर कर दिया था। यहां वो विभिन्न जगहों पर मकान किराये पर लेकर बैंक डकैती की घटना को अंजाम दिया करता था। अकुंजी और उसके गैंग को पकड़ना कोलकाता पुलिस के डकैती सेक्शन के लिए बड़ी चुनौती बन गई थी। उन डकैतों को पकड़ने के लिए ठीक उसी तरह का ऑपरेशन किया गया जैसा न्यू टाउन में किया गया है। यहां केवल किरदार बदले थे लेकिन घटना ठीक वैसी ही घटी जैसा दो दशक पहले घटी थी।
हमने दरवाजा तोड़ा था, यहां फाॅर्स ने कमरे की बेल बजाई थी
कोलकाता पुलिस के उस अधिकारी ने बताया , वर्ष 2000 में सोर्स से हमें सूचना मिली थी कि दमदम के कालिंदी में अकुंजी और उसका गैंग छुपा हुआ है। इसके बाद 4 टीमें बनाई गई। प्रत्येक टीम में 8- 10 ऑफिसर थे। इसके बाद हम सब मौके पर पहुंचे। जब टीम अकुंजी के ठिकाने पर पहुंची तब कमरे के बाहर पुलिस के आने के बाद कमरे के भीतर हलचल होने लगी थी। जिस तरह कि हलचल न्यू टाउन केस में भी अधिकारियों को महसूस हुई थी। कमरे के भीतर किसी के चलने और बंदूक में गोलियां भरने कि आवाज सुनाई दे रही थी। इसलिए हमें यह समझते देर न लगी कि डकैत हम पर हमला करेंगे। हम भी इम्प्रोवाइज्ड आर्म्स से लैस वहां पहुंचे थे। कोलकाता पुलिस के उस अधिकारी ने यह भी बताया कि पहले 9 एम एम पिस्तौल केवल लालबाजार के आरमोरी में ही रहती थी। स्पेशल रेड पर जाने के लिए उसका इस्तेमाल किया जाता था। उस दौरान ये डकैत भी मेड इन चाइना 9 एम एम पिस्तौल का इस्तेमाल करते थे। पूरी तैयारी के बाद टीम ने दरवाजा तोड़ दिया। कमरे में अंधेरा था और जैसे ही पुलिस भीतर घुसी डकैतों ने गोलियां बरसानी शुरू कर दी थी। इसके बाद पुलिस और डकैतों में गोलीबारी शुरू हो गई। इस घटना में एक एसआई डकैतों की गोली से घायल हुआ था। उस अधिकारी ने बताया , हमने एक डकैत का एनकाउंटर किया था और वाजिद अकुंजी को घायल अवस्था में बरामद किया था। उसे तीन गोलियां लगी थी लेकिन वो बच गया था। बाद में ट्रायल के दौरान भागने के वक्त पुलिस के हमले में उसकी मौत हो गई थी। उस पर दर्जनों बैंक डकैती के मामले थे।
2000 - 2005 में कोलकाता को कर दिया गया था डकैत शून्य
कोलकाता पुलिस में अस्सिटेंट कमिश्नर ऑफ़ पुलिस के तौर पर कार्यरत सुकुमार घोष ने इस मामले में कई जानकारी और अपने अनुभव साझे किये। अस्सिटेंट कमिश्नर ऑफ़ पुलिस सुकुमार घोष ने बताया, उन दिनों डकैती सेक्शन में ऑफिसर इंचार्ज (ओसी) बी के साहा पर कोलकाता को डकैती शून्य करने का जूनून सवार था। जब से उन्होंने डकैती सेक्शन की कमान संभाली थी , डकैतों पर शिकंजा कसना आसान हो गया था। बी के साहा की टीम में उस दौरान एडिशनल ओसी अमीनुल हक, मनोज दास, राम थापा, इंद्रनील चौधरी ,अरुण दे और मैं (सुकुमार घोष ) शामिल था। उस दौरान मैं सब इंस्पेक्टर हुआ करता था। उन्होंने बताया , इस टीम ने लगातार कोलकाता में डकैतों के खिलाफ अभियान चलाया था। कालिंदी में भी इसी टीम ने डकैतों का सफाया किया था। उन्होंने यह भी बताया कि उस दौरान डकैतों पर शिकंजा कसने के पीछे उन्हें सजा दिलवा पाना बड़ी भूमिका रही। घोष बताते है , 2000 से 2005 में जितने भी डकैत पकड़े गए उन्हें सजा मिली जिससे क्राइम ग्राफ घट गया था। वरना उससे पहले डकैतों को गिरफ्तार करने के बाद उन्हें जमानत मिल जाती थी और जेल से छूटकर बाहर निकलने पर फिर वो क्राइम करते थे। मगर इस टीम ने कोलकाता में क्राइम रेट को घटा दिया था।
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