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Tuesday, July 20, 2021

21 JULY शहीद दिवस : आखिर क्यों है ये TMC के लिए इतना खास ? क्या इसी दिन से ममता बनर्जी ने देखा था CM बनने का सपना?

 "हालाँकि , इस बार कोरोना महामारी के कारण शहीद दिवस की रैली वर्चुअली आयोजित की जाएगी। वर्चुअल कार्यक्रम में इस बार मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का भाषण न सिर्फ बंगाल के लोग सुनेंगे बल्कि देश के कई राज्यों के लोग भी सुनेंगे। इसके लिए टीएमसी ने काफी तैयारी भी कर ली है। मगर, सभी के जेहन में ये बात उठती है आखिर 21 जुलाई टीएमसी के लिए इतनी ज्यादा महत्वपूर्ण क्यों है ? ये जानने के लिए हमें सबसे पहले जानना होगा 21 जुलाई 1993 यानी करीब 28 साल पहले बंगाल में क्या घटना घटी थी।  इस 21 जुलाई को शहीद दिवस का नाम क्यों दिया गया था ? "

CM Mamata Banerjee (twitter )


कोलकाता : कल टीएमसी के लिए बहुत ही ऐतिहासिक दिन है। 21 जुलाई यानी शहीद दिवस, ये दिन मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के लिए बेहद खास होता हैं।  हालाँकि , इस बार कोरोना महामारी के कारण शहीद दिवस की रैली वर्चुअली आयोजित की जाएगी। 

वर्चुअल कार्यक्रम में इस बार मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का भाषण न सिर्फ बंगाल के लोग सुनेंगे बल्कि देश के कई राज्यों के लोग भी सुनेंगे। दरअसल , शहीद दिवस का पालन सिर्फ बंगाल में ही नहीं बल्कि अन्य राज्यों में भी किया जायेगा। ये पहला मौका होगा जब बंगाल के अलावा देश के अन्य राज्य में टीएमसी के नेतृत्व में शहीद दिवस मनाया जायेगा। इस शहीद दिवस से आगामी 2024 लोकसभा चुनाव के लिए मुख्यमंत्री ममता बनर्जी बिगुल फूकेंगी। इसके लिए टीएमसी ने काफी तैयारी भी कर ली है। 

मगर, सभी के जेहन में ये बात उठती है आखिर 21 जुलाई टीएमसी के लिए इतनी ज्यादा महत्वपूर्ण क्यों है ? ये जानने के लिए हमें सबसे पहले जानना होगा 21 जुलाई 1993 यानी करीब 28 साल पहले बंगाल में क्या घटना घटी थी।  इस 21 जुलाई को शहीद दिवस का नाम क्यों दिया गया था ? 

ममता बनर्जी बनी थी विरोध की लहर 

बता दें कि उस दौरान वाममोर्चा का शासन बुलंदियों पर था। ममता बनर्जी कांग्रेस में थी और कम्युनिस्ट पार्टी के खिलाफ मजबूत विपक्ष के तौर पर उभर कर समाने आयी थीं। जानकरों का मानना है कि जब 14 वर्षीय - कम्युनिस्ट सरकार ने 1991 भारी जनादेश हासिल किया था उस दौरान ममता बनर्जी कांग्रेस की युवा शाखा को अध्यक्ष बनाई गयी थीं। उनके अध्यक्ष बनने के बाद ही विरोध की नयी लहर शुरू हुई थीं। 

 ममता बनर्जी शुरुआत से ही अन्याय के खिलाफ मुखर होती रही हैं। इसके बाद जब ममता बनर्जी को 1992  के अक्टूबर महीने में नरसिम्हा राव मंत्रालय में खेल व युवा मामलों का मंत्री बनाया गया था तब ममता बनर्जी ने ब्रिगेड परेड ग्राउंड में विशाल रैली कर कम्युनिस्ट पार्टी की सरकार को हटाने का बिगुल बजा दिया था।  

इसके बाद से ही कम्युनिस्ट पार्टी के खिलाफ विरोध के स्वर उठने लगे थे।  दिसम्बर 1992 में कम्युनिस्ट सरकार के खिलाफ जनता का आक्रोश उस वक़्त और तीव्र हो गया जब राइटर्स बिल्डिंग में कथित तौर पर एक विकलांग किशोरी से दुष्कर्म की घटना घटी।  

इसके बाद ही कम्युनिस्ट पार्टी की कथित तौर पर वोटिंग के दौरान रिगिंग को बंद करने के लिए वोटिंग में वोटर आईडी कार्ड को आवश्यक बनाने के लिए ममता बनर्जी के नेतृत्व में कांग्रेस की युवा शाखा ने राइटर्स बिल्डिंग अभियान का फैसला किया था। ममता बनर्जी का ये राइटर्स अभियान इतिहास के पन्नों में लिखा गया है।   


21 जुलाई 1993 का वो दिन और आज का दिन 

21 जुलाई 1993 जब युवा कांग्रेस ने राइटर्स अभियान किया था , 13 लोगों ने अपनी जान गवां दी थीं। 21 जुलाई का वो दिन आज एक बड़ा उत्सव बन गया है। शहीदों को याद कर टीएमसी की सरकार बड़े कार्यक्रम का आयोजन करती है जहाँ लाखों समर्थक धर्मतल्ला के विक्टोरिया हाउस के सामने इकट्ठा होते हैं और ममता बनर्जी के एक - एक भाषण पर तालियां पीटते हैं। 

मालूम हो कि 21 जुलाई 1993 में युवा कांग्रेस ने सीपीएम की 'वैज्ञानिक हेराफेरी ' को रोकने के लिए वोटिंग में वोटर आईडी कार्ड को आवश्यक बनाने की मांग पर राइटर्स अभियान किया था।  राइटर्स अभियान को लेकर हजारों की तादाद में युवा कांग्रेस राइटर्स की तरफ बढ़ रहे थे। जब हावड़ा से युवा कांग्रेस का एक दल टी-बोर्ड के निकट पहुंचा तब पुलिस ने उन्हें वहीँ रोक दिया।  पुलिस ने बैरिकेड लगा दी।  

लेकिन जब युवा कांग्रेस समर्थकों ने घेरा तोड़ने की कोशिश की तब पुलिस ने लाठीचार्ज कर दी।  इसके साथ ही पथराव भी किया गया और आंसू गैस के गोले भी दागे गए।  इसके कारण भीड़ तीतर - बितर हो गई।  किसी ने टी - बोर्ड और कैनिंग स्ट्रीट की संकरी गलियों में शरण ली तो कोई दूसरी जगह भाग गया।  हालाँकि , संकरी गलियों में भी घुसकर पुलिस ने उन समर्थकों बाहर निकाला था और उन पर लाठियां बरसाई गयी थी। 

इसी दौरान एक पुलिस कर्मी खून से लथपथ संकरी गली से बहार निकला था जिसे देखकर बाकी पुलिस कर्मी क्षुब्ध हो गए थे और उन्होंने आक्रामक रुख अपना लिया था।  उस दौरान ममता बनर्जी भी टी - बोर्ड के पास पहुँच चुकी थीं।  सैंकड़ों समर्थकों के साथ पहुंची ममता बनर्जी वहां बनी ट्रैफिक पोस्ट पर चढ़ गयी।  

ममता बनर्जी ने अपनी ताकत उस दौरान कम्युनिस्ट सरकार को दिखा दी थी।  इस दौरान ममता बनर्जी को भी पीटा गया था।  वही दूसरी तरफ तत्कालीन व दिवंगत मुख्यमंत्री ज्योति बसु ने पहले ही एलान कर दिया था कि युवा कांग्रेस समर्थकों को किसी भी कीमत पर राइटर्स बिल्डिंग में आने न दिया जाये।

 बता दें कि जब ममता बनर्जी ने पहली बार मुख्यमंत्री की शपथ ली थी तब उन्होंने ये वाक्या याद किया था कि कभी वो वक़्त भी था जब उन्हें राइटर्स बिल्डिंग से खदेड़ दिया गया था।  अब हम दोबारा 21 जुलाई की घटना पर लौटते हैं, इधर ,युवा कांग्रेस की योजना के अनुसार , कई दिशाओं से समर्थक राइटर्स बिल्डिंग की तरफ आने वाले थे।

 इस दौरान जब एक रैली मेयो रोड जहाँ धारा 144 लागू थी , वहां से राइटर्स की तरफ आ रही थी तभी पुलिस ने उन सभी समर्थकों को मेयो रोड और रेड रोड क्रासिंग पर रोक दिया।  इस पर समर्थकों के साथ पुलिस की हाथापाई शुरू हो गई। समर्थकों ने पथराव शुरू कर दिया। 

भीड़ को नियंत्रित करने के लिए पुलिस ने लाठीचार्ज शुरू कर दिया।  मगर देखते ही देखते वह इलाका रणक्षेत्र में तब्दील हो गया।  पुलिस को लगा की भीड़ ज्यादा बढ़ जाएगी तो उन्हें संभालना मुश्किल होगा, पुलिस ने फायरिंग कर दी जिससे 13 लोगों की मौत हो गई।

 हालाँकि , गोली चलाने के आर्डर दिए गए थे या नहीं , अभी तक इस पर रहस्य बरक़रार है। वहीँ , दूसरी तरफ, 13 समर्थकों की हत्या को लेकर ही 21 जुलाई को शहीद दिवस घोषित किया गया और उसके बाद से ही इस दिन को मनाया जाने लगा।  

हालाँकि , जब ममता बनर्जी ने टीएमसी पार्टी बनाई और जब 2011 में टीएमसी की सरकार बनी तब शहीद दिवस बड़े पैमाने पर मनाया जाने लगा।  कुछ मीडिया रिपोर्ट्स की बात करें तो इस शहीद दिवस की रैली में 20  से 30  लाख समर्थक की भीड़ भी देखी जा चुकी हैं।  


 शहीद दिवस से ममता बनर्जी का 2024 लोकसभा चुनाव की तरफ एक कदम 

इस बार भले ही शहीद दिवस का आयोजन वर्चुअली किया जा रहा हो लेकिन मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का भाषण 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव पर केंद्रित होने की अटकलें लगायी जा रही हैं।  इस बार 2021 विधानसभा चुनाव में टीएमसी ने जिस तरह जीत हासिल की है उसके बाद से ममता बनर्जी एक सफल विरोधी के तौर पर पीएम नरेंद्र मोदी के खिलाफ एक चेहरा बन गई है। 

राजनीति के जानकारों की मानें तो ममता बनर्जी ही एक मात्र पीएम मोदी को टक्कर दे सकती हैं। हालाँकि , ममता बनर्जी भी 2024 लोकसभा चुनाव के लिए खुद को तैयार करने और टीएमसी को राष्ट्रीय पार्टी बनाने के लिए पूरा दमखम लगा रही हैं।  

उनके इस कार्य में उनके भतीजे और टीएमसी के राष्ट्रीय महासचिव अभिषेक बनर्जी कदम से कदम मिलाकर आगे बढ़ रहे हैं। अब देखना ये है कि कल यानी बुधवार को शहीद दिवस पर ममता बनर्जी क्या पैगाम लेकर आती हैं ? 











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